Monday, August 15, 2011

मेरा राम मेरी नमाज !!

बचपन में सुनते थे अक्सर दादी माँ की बातों में !
यही झूठ पढ़ा था किताबों और कबीर के दोहों में !!
सबने कहा कि वो रोम-रोम में कुछ ऐसे समाया है !
दिल से खोजो तो पत्थरों में भी वही खुदाया है !!

हम तो नमाजी बने, जहाँ जहाँ पत्थर सर पे गिरे !
लहू के धब्बों में सना हर पाक संग दिखाई दिया !!
हमने तो कान लगाये रक्खा आरती-अजानों पे भी !
एक औपचारिकता के सिवा कुछ ना सुनाई दिया !!

टटोला गलियों में लावारिस बच्चों के आंसुओ को भी !
अँधेरे कल के सिवा कुछ भी तो ना दिखाई दिया !!
पीछे तो चला मैं नेताओं-समाज सुधारको के भी !
फसाद और नफरत ही तो बोती रही उनकी रेलिया !!

माथा टेका अक्सर हमने मोलवी- संतों के आगे भी !
साँसों में उनकी बू-ऐ-फरेब को ही तो महसूस किया !!
मंदर-मस्जिद की नीवों को लहू से भी सींचा बहुत !
दंगो में खून-ऐ-जिगर शर्मिंदा सा आँखों में उतर आया !!

फिर भी तुम कहते हो कि इश्वर रोम-रोम में समाया है !
मैंने तो हर जगह बुराई को ही हँसते पसरते पाया है !!
मैं फिर भी जिन्दा रह लूं उसके ना होने के अहसास में !
पर साथ होने के झूठे वादों से अब दिल घबराया है !!

मैं नहीं करता इनकार कि वो सृष्टि का रचनाकार है !
पर अब मैली हो चुकी इस रचना से उसे कहाँ प्यार है !!
और प्यार है, तो क्यों बनके पैगम्बर फिरसे नहीं आता !
राम बने या मोहम्मद, हमें रास्ता क्यों नहीं दिखाता !!

आके मुस्सल्लम हिंद की नब्जों में खूने-इश्क डाल ज़रा !
मजहबी हैवानियत को आग लगा, राख में ढाल ज़रा !!
मैं फिर बेसबर सा मंदर जाऊँगा अपने खुदा से मिलने !
पांचो वक़्त नमाज पढ़ूंगा बसाके मोहनी मूरत दिल में !!

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