Friday, January 14, 2011

संग्रह

बेवजह ख्वाइशो की बेड़िया टूटे तो रंज कैसा!
इससे बेहतर और क्या ही होता, हुआ जैसा !!

क्षणिक सुख का अंत गहरी सांस से होता है!

उखाड़ दो ये साँसे, छीन लो सीने में जो प्यास है !
मुझे मिलेगा सबब फिरसे कहने का `सब कुछ बकवास है` !!

आज भी तू मुझ में जिंदा है कहीं और मैं तुझ में फना होता जाता हूँ !
पर तू ग़म ना कर, हर एक आह पे और जवाँ होता जाता हूँ !!

सुनके बाते ज़माने की तुम यकीन-ए-मरासिम ज़ार-ज़ार किये जा रहे हो !
नजरो से तो गिरा ही दिया, अब अश्को में मेरी रूह भी डुबोये जा रहे हो !!

ना तेरा यार खुदा था ना तेरा प्यार खुदाई जैसा, फिर इंसानों से फरिश्तों से वफ़ा निभाता क्यूँ हैं !
हाथों की लकीरों में था शायद यही लिक्खा, होंठो पे शिकायत और आँखों में दरिया लाता क्यूँ हैं !!

दफ़न करदो साँसों को कि रूह को ज़रा सुकून मिले,
यूँ भी तो सिसक -२ के चलती है ग़म-ए-हिज़्र के साये तले !!

एक नज़्म लिखी और एहसास हुआ, गीलापन बाकी है स्याही में आज भी बहुत !!

सच तो ये है कि तुम आज भी जिंदा हो और मैं फिरसे फना हो गया हूँ !
और देखो मुझे कोई ग़म भी नहीं, लगता है फिरसे जवाँ हो गया हूँ !!

सच तो है कि वक़्त के इम्तेहान अभी और बाकी है,
पर ये कमबख्त रूह भी कहाँ हौंसलो से खाली है !

ललकार तो उत्तेजनाओ का सतही ज्वार मात्र है !
तलवार पे लगा रक्त ही सच्चे वीर का प्रमाण है !!

इशारों में जो इतने लब्ज़ ही होते, तो क्या दिलो-दिल जब्त ना होते !
ग़र तूने होंठों से कुछ कहा होता कभी, तो छालों से क्यूँ मेरे पावँ सख्त होते !!

यूँ मुस्कुराके जो मिलते हो हमसे, ज़रूर रंजिशे छिपाए बेठे हो सीने में कहीं !
ग़र मुहब्बत ही होती दिल में तो मुलाकातों पे आँखे ही ना छलक आती !!

इस रात की सुबह भी ज़रूर होगी .....

शुक्र है खुदा के बन्दों का जो उसे पत्थर की सूरत में मंदिरों में बिठाये रखते है !
कोई मिलता है इस जहां में हमसे भी मुस्कुराके, हम भी खूब वहम रखते है !!

साकी! मयखाने की बेदम शराबों से किसी और रिंद का जी बहला !
सुबोह-शाम उनकी नजरों से छलकते है मय के प्याले, मेरे आगे !!

पत्थरों! टकराना है मेरे सर से तो बेशक टकरा ही जाओ,
पर देखना इस मस्ती-ए-क़जा में अपना नमाज़ी ना गवां बेठो

जिन्दगी ! कहाँ लेके जा रही हो ??

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