आज भी गिरती है खिडकियों पे बारिश की बूंदे, तेरी छुअन पाने के इरादे से !
उदास सी पसर जाती है जमीं पे, बिलखती रहती है तेरी हथेलिया नहीं पाके !!
हर सुबह मिलता है सिरहाना गीला, मालुम नहीं इसकी क्या वजह है !
लगता है नमी ने मेरे साथ-2 इसके सीने में भी जगह बना ली है !!
देखना अपने सामान में, मेरे जीने की ख्वाइश तो नहीं ले गयी साथ अपने !
ढूंढा बहुत सब जगह, नहीं मिली, शायद मैं ही कही रखके भूल गया उसे !!
पहरों गली के नुक्कड़ को ताकते रहते है, घर के दरवाजे तेरे इंतज़ार में !
मैं तो थक गया इन्हें बहलाते- समझाते, अब तू ही समझा इन्हें आके !!
ये दीवारे कान लगाये रखती है, ना जाने क्या सुनने के लिए बेक़रार है !
नहीं जानता क्यों रोती है हर सावन में, तेरी आहटे भाती थी शायद इन्हें !!
खेर जाने दे, ये सब तो ऐसे ही दीवानों की तरह तुझे तलाशते रहते है !
इनके बिखरने के डर से तेरे जाने की खबर छिपाके रखी मैंने इनसे !!
वैसे मेरी फिक्र मत करना तू, तेरी जुदाई से बिल्कुल टूटा नहीं मैं !
कमबख्त रूह हौसलों से भरी है आज भी, बिल्कुल बिखरा नहीं मैं !!
The perils of return
4 months ago
कमबख्त रूह हौसलों से भरी है आज भी...बहुत खूब कहा है
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