Sunday, January 9, 2011

कुछ पुराने दस्तावेज टटोले और जाना क्या खूब नज़्म लिखी थी बरसो पहले .....

आज भी गिरती है खिडकियों पे बारिश की बूंदे, तेरी छुअन पाने के इरादे से !
उदास सी पसर जाती है जमीं पे, बिलखती रहती है तेरी हथेलिया नहीं पाके !!

हर सुबह मिलता है सिरहाना गीला, मालुम नहीं इसकी क्या वजह है !
लगता है नमी ने मेरे साथ-2 इसके सीने में भी जगह बना ली है !!

देखना अपने सामान में, मेरे जीने की ख्वाइश तो नहीं ले गयी साथ अपने !
ढूंढा बहुत सब जगह, नहीं मिली, शायद मैं ही कही रखके भूल गया उसे !!

पहरों गली के नुक्कड़ को ताकते रहते है, घर के दरवाजे तेरे इंतज़ार में !
मैं तो थक गया इन्हें बहलाते- समझाते, अब तू ही समझा इन्हें आके !!

ये दीवारे कान लगाये रखती है, ना जाने क्या सुनने के लिए बेक़रार है !
नहीं जानता क्यों रोती है हर सावन में, तेरी आहटे भाती थी शायद इन्हें !!

खेर जाने दे, ये सब तो ऐसे ही दीवानों की तरह तुझे तलाशते रहते है !
इनके बिखरने के डर से तेरे जाने की खबर छिपाके रखी मैंने इनसे !!

वैसे मेरी फिक्र मत करना तू, तेरी जुदाई से बिल्कुल टूटा नहीं मैं !
कमबख्त रूह हौसलों से भरी है आज भी, बिल्कुल बिखरा नहीं मैं !!

1 comment:

  1. कमबख्त रूह हौसलों से भरी है आज भी...बहुत खूब कहा है

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